Tuesday, June 5, 2012

मेरे  मन  की  झरना 


कल-कल, कल-कल, झर-झर, झर-झर

बहती मेरे मन की झरना

कल्पनाओं की वादियों से

स्मृतियों की घाटियों से

होकर बहती मेरे मन की झरना.


इठलाती, बलखाती मेरे मन को सहलाती

बढती जाती मेरे मन की झरना

नई पुरानी यादों के,

सुख दुःख के अवसादों की

गीत गुनगुनाती जाती

मेरे मन की झरना

सुमन सरन सिन्हा 
मार्च १९,२००९ 

No comments:

Post a Comment