Sunday, November 29, 2015

मेरा पुराना वाला चश्मा

मै जब भी अपने अतीत के झरोखे से झांकता हूँ
तो कुछ धुंधली यादें,कुछ कुम्लाही सी. कुछ घबराई सी
अतीत के परकोटे पर बैठी कुछ सहमी और कुछ सकुचाई
जीवन संग्राम में पुरष्कृत और कुछ प्रताड़ित सी यादें को दिखलाती
 ये मेरा पुराना वाला चश्मा

कुछ होटों के कपोलों पर बैठी और थिरकती यादें
यौवन से परिपूर्ण छलकती और छलकाती यादें
स्वर्णिम सपनों को दर्शाती यादें
ये मेरा पुराना वाला चश्मा

जैसे नई नवेली दुल्हन हो मुस्कुराती, आँचल के झरोके से
जैसे मृगनयनी के चितवन करे नुपुर चाप चोरी से
जैसे प्रेयशी के प्रेमालाप करे पुकार पिया पिया
करती हैं भ्रमित ये यादें और दिखती हैं मनमोहक दृश्य
ये मेरा पुराना वाला चश्मा

कभी मेघ सा गर्जना और कभी बिजली सा कड़कना
कभी बारिश के बूंदों जैसा टप टप कर गिरना
कभी सूखे पत्तों का चरमर चररमर
कभी इन्द्रधनुष के स्वर्णिम दृश्यों भरी यादों को दर्शाती
ये मेरा पुराना वाला चश्मा

माँ के हाथों की बनाई निवाला
कभी खुशामद और कभी क्रोध भरी ज्वाला
ममता से सर पर हाथ फिराती
मातृ प्रेम और ममता के बहुरूप को दिखाती
ये मेरा पुराना वाला चश्मा

पिता के प्रेम और वात्सल्य को दिखाता
उनके सोहरत, सीरत और संगीत प्रेम दर्शाता
पग पग पर संस्कारों का पहचान दिलाता
ये मेरा पुराना वाला चश्मा

कभी अपने स्वजनों से झगड़ना
कभी रूठना और मनाना
कभी क्रोधित मन से प्यार दर्शाना
प्रस्फुटित होती कोमल भावनाओं को दर्शाती
ये मेरा पुराना वाला चश्मा

यौवन से प्रोढ़ा तक
संयम से कामुकता तक
भोग विलास के पैमानों को और
बदलते विस्व के आयामों को दिखलाती
 ये मेरा पुराना वाला चश्मा

सुमन के यादों की पंखुड़ियों पर पड़े
ओस के बूंदों की झिलमिलाती आइनों मे
भूत, भविष्य और वर्त्तमान के दृश्यों को दिखलाती
कभी सकुचाती, कभी सरमाती और कभी आगाह कराती
ये मेरा पुराना वाला चश्मा


सुमन सरन सिन्हा
टोरंटो, कनाडा
रविवार, २९ नवंबर २०१५
ये प्यार क्या होता है?
(भाग -)

एक दिन मेरे दिल ने धीमी आहट करते हुए मेरे पास आया
नई नवेली दुल्हन सा सरमाया, जुबान से लड़खड़ाया, कुछ बड़बड़ाया
और मेरे कानो के पास आकर धीमे से फुसफुसाया
सुमन बता की ये प्यार क्या होता है?

क्यूँ मेरा मन कभी उत्तेजित और कभी निराश होता है
कभी गगन को छूने की इक्षा तो कभी अतिसय उदास रहता है
कभी निरभता से परिपूर्ण और कभी कोलाहल से भरा रहता है
क्यूं सदा किसी के पदचाप सुनने की कशिश सा बना रहता है
क्या ये मेरी दबी हुई उत्कंठाओं को प्रदर्शित करता है
सुमन बता की ये प्यार क्या होता है?

इस पतझड़ मे सुखे पत्तों के गिरने की आवाज से डरा रहता है
मेरा मन कभी कुछ होने के अहसास से घिरा रहता है
कभी मधुर मिलान के कल्पनाओ से ही सांसों मे सॉस रहता है
मन को कितना भी समझाऊं, मगर एक मानशिक प्यास सा रहता है
सुमन बता की ये प्यार क्या होता है?

गर्मी के भरे धूप मे भी सर्दियों सा अहसास रहता है
और शरद हवाओं के चलने पर भी मेरा तन तपिश से भरा रहता है
नीलाम्बर मे बादल के छाने पर और बारिश के बूंदों के टप टपाने पर
मेरा रोम रोम सिहरन से भरा रहता है
मन कभी भयकम्पित और कभी खुशियों से आछादित रहता है
सुमन बता की ये प्यार क्या होता है?

 कालिमा जब रात्रि को आगोश मे लेती है
जीव-जंतु और सकल प्राणी जब सुख से सोता है
झिंगरुओं के स्वर से वातावरण भय समान होता है
यदा कदा मेढंकों का टर टर्राना भी गुंजायमान होता है
ऐसी निश्छल रात्रि मे भी मेरा मन क्यूं अशांत रहता है
सुमन बता की ये प्यार क्या होता है?

जब मै चलती हूँ सड़कों पर तो, गिरेबान के ऊपर से झांकती नजरें
दर्शाती है उनके प्रश्न-शूचक भावों को, जैसे पूछती हो की हुआ क्या है
क्या किसी नटखट ने असमय छुआ क्या है
शर्म से मै किंकर्त्यमूढ हो जाती हूँ इसलिए
सुमन बता की ये प्यार क्या होता है?

अब ना तो मेरे मन की रहती है सुध ना तन की
ना रहती है घर की, समाज की और ना ही वतन की
ऐसी स्तिथि मे मै करूँ क्या जतन
जिससे की मै पाऊँ शांति और मानशिक धन
मै करती हु मिन्नतें बारम्बार
सुमन अब तो बता भी दे की ये प्यार क्या होता है?



सुमन सरन सिन्हा
टोरंटो, कनाडा
शुक्रवार, अक्टूबर ३०, २०१५