Saturday, November 10, 2012

जमाना बदल गया है

जमाना बदल गया है 

ना तुम बदले न ख़यालात बदली,  ना रात बदली न दिन बदला 
ना कोयल की कूक बदली,  ना नागिन की फूक बदली 
ना तन का जेवर बदला, न मन का तेवर बदला 
और कहते हो कि जमाना बदल गया है 

मानशिक विकार  
ना  ईर्ष्या  और द्वेष ही बदला, न झूठा आडम्बर और परिवेश ही बदला 
ना तो हीन भावनाओं की क्षीणता बदली,  न कलुषित विचारों की हीनता बदली 
और कहते हो कि जमाना बदल गया है

मानवता 
ना  तो मानवता और प्रकृति का निरंतर बलात्कार ही बदला
न ही अबला और बेबसों का चित्कार  ही बदला
ना तो गरीब और निर्बलों का शोषण ही बदला 
न ही समर्थ और बलवानों का पोषण ही बदला 
और कहते हो कि जमाना बदल गया है

प्रकृति 
ना तो बारिस मे मेढकों का टर टराना  ही बदला
न ही सर्द हवाओं का सर सराना ही बदला
न तो पतझड़ मे सूखे पत्तों का चरमराना ही बदला
ना तो  गर्मी के धूप का गरमाना ही बदला
और कहते हो कि जमाना बदल गया है

राजनिति
ना तो राजनीति  मे परिष्कार और भ्रष्टाचार रुपी  विकार ही बदला
न नेताओं की गिरती नैतिकता, व सामाजिक व्यभिचार ही बदला
ना तो समाज मे व्यापित भाई-भतिजावाद ही बदला 
न ही राजनीति मे परिवारवाद, सत्तावाद और रूढ़ीवाद ही बदला 
और कहते हो कि जमाना बदल गया है

सौन्दर्य 
ना तो युवतियों का  साज़ व श्रृंगार ही बदला
न ही तिरछी निगाहों का तीर चलना ही बदला
ना ही कमसिन अदाओं का अंदाज ही बदला
न ही कमर का लचकना और शोखपना ही बदला
और कहते हो कि जमाना बदल गया है

आत्मबल 
ना तो कुछ करने की लालसा व आत्मविस्वास ही बदला
ना तो मन की भावनाओं को पूरा करने का आस ही बदला
ना तो ह्रदय  में हो रही कम्पन और श्वास व परिश्वास ही बदला
ना तो भाई चारे की चलन और अपनों पे विश्वास  ही बदला
और कहते हो कि जमाना बदल गया है

बदलाव 
असल मे न जमाना बदला और ना ही परवाना बदला
ना प्रेमियों का दीवाना बदला और ना  ही इश्क का गाना ही बदला
बदले तो हम, बदला हमारा गम, बदली हमारी  इक्षायें और नैतिकता की परीक्षाएं
बदला हमारा ढंग, हुए हम मानसिकता से बेढंग

किया हमने अपने संस्कारों व आदर्शों को न्योंछावर
और किया झूठे आडम्बरों  व झूठे  स्वाभिमानों को वर
अपनों के सम्मानों का, किया हमने हनन
और चापलूसों और मक्कारों को, किया हमने वरण

जबतक हम नहीं बदलेंगे, तब तक जमाना नहीं बदलेगा
संकुचित विचार नहीं बदलेंगे, ना ही मानशिक दृष्टिकोण बदलेगा
संस्कार नहीं बदलेगा, ना ही कलुषित विकार बदलेगा
अपनों पे आघात व प्रतिघात करना नहीं बदलेगा 
इर्ष्या, द्वेष, क्रोध व अहंकार नहीं बदलेगा 
 और इससे कभी भी घर, परिवार, समाज और संसार नहीं बदलेगा

इसलिए मत कहो की जमाना बदल गया है


सुमन सरन सिनहा 
शनिवार, नवम्बर  10, 2012


Friday, November 2, 2012

शिक्षा 

मैने आज अपने मानसिक मंजुषा से, एक अनमोल रत्न निकाला  है 
जो की शिक्षा मे भी, शिक्षित होने का मर्म बताता है 

लोग करते हैं अभिमान और समझते हैं की हो गये शिक्षित 
और इसी धोखे मे भरे पड़े रहते हैं, और होते हैं वास्तविक मे अशिक्षित

वैसे तो वाकपटु , चापलूसों  और मौकापरस्तों से दुनिया भरी पड़ी है 
जिन्हें सिर्फ अपने बारे मे व अपना मान सम्मान, दुःख और दर्द की पड़ी है 

ऐसे लोग ही समझे जाते हैं इस युग मे ज्ञानी, और होती है उनकी इज्जत 
होते हैं प्रतिष्ठित समाज मे, और पाते हैं मान सम्मान की लज्जत 

मगर  जो हैं वास्तविक मे शिक्षित, और शिक्षा का मायने समझते हैं 
क्रोध, अभिमान, लालच, इर्ष्या और वैमनस्यता से कोषों दूर रहते हैं 

समर्थ ज्ञान एक ऐसी चीज है, जिसे छुपाने से छुपाया नही जा सकता है 
जो है स्वयंग अवलोकित, उसे प्रकाशित नही किया जा सकता है 

सच्चा ज्ञान, विज्ञान व मन की सुन्दरता, करती है जग को आलोकित 
जैसे रश्मिरथी करती है अष्ट अश्वों पे चढ़, जग को प्रकाशित 

सुमन सरन सिन्हा 
रविवार, अक्टूबर  28, 2012 

Monday, September 17, 2012

मेरे मन के आँगन में 
इक्षाओं के इस गगन में 
होती है पुष्पित व प्रस्फुटित 
ये सांसारिक जगत की मोह व माया

कभी अपनों से तो कभी सपनों से
कभी मित्रों से तो कभी बंधुओं से 
होती है आसक्ति तो कभी विरक्ति 
ये सांसारिक जगत की मोह व माया 

कभी मन से तो कभी तन से 
कभी भोग विलास व धन से 
होती है ग्रसित 
ये सांसारिक जगत की मोह व माया 

कभी मान-सम्मान की अभिलाषा से 
तो कभी कुछ करने की लालसा से 
होती है आच्छादित 
ये सांसारिक जगत की मोह व माया 

अविरल बहती इन कामनाओं से 
पोषित मन की भावनाओं से 
होती है विषाक्त मन व काया 
ये सांसारिक जगत की मोह व माया 

कहता है कवि सुमन 
अगर पाना है वास्तविक मानशिक धन 
तो छोड़ना होगा अतिसय आशक्ति
और करना होगा प्रभु कामना व भक्ति 
तभी मिलेगा इस भवसागर से मुक्ति 

सुमन सरन सिन्हा 
कनाडा 
जुलाई ४, २०११ 
लो एक और नया साल आ गया है 


धरती पर ओस और नभ मंडल में जोस छा गया है 

लो एक और नया साल आ गया है 

कहीं पर खुशी की लहर व लाली,  और कही पे दुखों का कहर वाली 

लो एक और नया साल आ गया है


कोई होगा हर्षित व उल्लाषित, और कोई होगा वक़्त के मार से त्रासित 

लो एक और नया साल आ गया है 


कोई करेगा अपनि योजनाओं का निर्माण,  तो कोई है भयभीत उनसे, जो करेगा फरमान 

लो एक और नया साल आ गया है


अभी अभी गए साल की रात ने, अपनि अंतिम अंगड़ाई ली थी,  
और चांदनी ने अपनि बाहें फैलाई थी की 

लो एक और नया साल आ गया है


सबके घर आये खुशियाँ,  और बंधनवार सजे, हो सबका मंगलमय और घर से तिमिर तजे

इन शुभकामनाओं के साथ 
लो एक और नया साल आ गया है 

सुमन सरन सिन्हा
शुक्रवार  जनुअरी  ६, 2012
होली 

लहरा रही है चहुँ ओर, खुशियों  की दामन और चोली 
आओ इस वसंत के आगोह में, खुलकर खेलें होली 

बन्दुओं, बांधवों के संग  मिलकर, गीत मिलन के गाएं
स्वाद वो रसों की करें बारिश, और पूरी वो पकवान मिलकर खाएं 

चैती, फगुआ और  ठुमरी से,  हो वातावरण परिणित 
पायल की हो झंकार, और मन  के तार हो झंकृत 

राग, द्वेष  और ईर्ष्या का हो रंग, बदरंग 
और मन  हो प्यार,सध्भाव्नाओ और, भाईचारे के संग

तभी बनेगा संपूर्ण विश्व इक टोली  
गायेंगे हमसब मिलकर गीत मिलन के, उस होली 

सुमन सरन सिन्हा 
मार्च  १०, २०१२ 

Tuesday, June 5, 2012

मेरे  मन  की  झरना 


कल-कल, कल-कल, झर-झर, झर-झर

बहती मेरे मन की झरना

कल्पनाओं की वादियों से

स्मृतियों की घाटियों से

होकर बहती मेरे मन की झरना.


इठलाती, बलखाती मेरे मन को सहलाती

बढती जाती मेरे मन की झरना

नई पुरानी यादों के,

सुख दुःख के अवसादों की

गीत गुनगुनाती जाती

मेरे मन की झरना

सुमन सरन सिन्हा 
मार्च १९,२००९ 

कठोर वचन


क्यूँ मनुष्य कठोर व कटु वचन कहता है

अपने मित्रों, बंधुओं व स्वजनों से दूर होता है

क्या ये संस्कारों के प्रदुषण का सूचक  है

या मिथ्या अभिमान और मानशिक अशिक्षा का द्योतक है

भगवान  श्री कृष्ण ने भागवत गीता मे कहा है

संसार मे सिर्फ देवगण या राक्षसग प्रवृति वाले मनुष्य हैं

और वे तामशिक, राजशिक या सात्विक गुणों के अधिपति होते हैं

और मनुष्यों के सारे संस्कार, इन्ही तीनों गुणों से प्रेरित होते हैं

अगर हमें अपने गुणों और संस्कारों से उपर उठना है

तो मृदु वचन, क्षमाशील और भागवत् भजन करना है


सुमन सरन सिन्हा 
मार्च १५,२००९ 
ना  तेरा  ना  मेरा 


ना धरती मेरी, ना अम्बर मेरा

इक तुम हो और, इक पैगम्बर मेरा

लोग कहते हैं कि, ये है मेरा, व वो है तेरा 

करते  हैं अभिमान कि, सब है उनका किया धरा

नहीं समझते, जिंदगी के गूढ़ रहस्यों को

वस्तुतः वो ना है मेरा, और ना है तेरा

आयेगा इक दिन, जब छोड़ जाओगे सब

तो क्या रक्खा है इन जज्बातों में

कि क्या है तेरा, और क्या है मेरा

कहता है सुमन, राम नाम है इक अचल धरोहर

जो रहा है सदा, और रहेगा सदा, तेरा व मेरा

सुमन सरन सिन्हा
मेय ९,२००९

संवेदना


दिल की धड़कन और संवेदना

करती है व्यक्त, व्यथित मन की वेदना

और करती है संवेदनशीलता की झंकार

जैसे करती हों प्रर्दशित, हजारों सपनों को साकार

देती है हमारे मूर्त भावनाओं को आकर

और कभी करती है हमारी उन्मक्त इक्षाओं का तार तार

क्या ये है हमारी संचित संस्कारों की धरोहर
                      
जो करती है प्रदर्शन बार बार                      

या ये है हमारी कल्पनाओं की काल्पनिक संसार

सुमन सरन सिन्हा 
मार्च २४,२००९

प्यार की  परिभाषा 



दिखावटी प्रेम प्रदर्शन को, समझते हैं लोग प्यार की भाषा

वार्षिक वैलेंटाइन दिवस मनाकर, बदलते हैं इसकी परिभाषा

समर्थ अनुसार करते हैं लोग, खर्च लुभाने को

और होते हैं भ्रमित कि, निभा ली प्यार दिखाने को

ऐसे लोग करते हैं जतन , पर अपने स्वार्थ निहित

नहीं करता है सच्चा प्रेम, जो होता है प्रदर्शन रहित

सच्चा प्रेम नहीं ढूँढता, किसी प्रकार का अनुमोदन

और ना ही चाहता है, कीमती सौगातों का शोधन

अगर करते हो अपने प्रिये से, सच्चा प्रेम

करो प्रदर्शन प्रेम का नित्यदिन, दैनिक कर्मो में 

और करो प्रदान मानसिक सुख व शांति, सुकर्मो से

पड़ेगा उठाना दुःख व दर्द समान, प्रिये के हरेक अडचनों में 

औए सहना पड़ेगा पीडा, पर मधुर वचनों से

तभी होगा प्रर्दशित सच्चा प्यार

जो करेगा दूर अवसाद और करेगा प्रदान प्रेम का सार


सुमन सरन सिन्हा
अप्रैल ८, २००९


मेरे  मन  का मधुबन 



मेरे मन के मधुबन में, हुए पुष्पित रंग बिरंगे फूल

चहुँ और है हरियाली, और नहीं है कोई शूल 

नील गगन में है अच्छादित, श्याम वर्ण मेघ

वसंत ऋतु का है वर्चस्व, शीतल पवन पर नहीं है वेग

ओस कि चादर है बिछी, और पंछी कर रहे हैं शोर

प्रातःकाल कि बेला है, और हो रही है भोर

नभ करती धरती का चुम्बन, और न दिख रही है छोर

इस निश्छल धवल कि बेला को देख, नाचे सुमन मन मोर

शनै शनै खग, मृग, और पपीहा करने लगे हैं शोर

मेढक लगे करने टर टर, नाचत हँसनी और मोर

कलियाँ होने लगी प्रष्फुटित, और लगे करने हैं भंवरे गुंजन

नई भावनाओं और कामनाओं का, होने लगा है सृजन

सूरज की किरणों की आभा से, होने लगी है स्वेत नभ मंडल

दूर से दिख रही है आते हुए एक तत्त्वदर्शी, हाथ में लिए कमंडल

उनके चेहरे पर है तेज, और होठों पर मुस्कान

आ समीप दिया उन्हों ने, प्रेम पूर्वक अपनी पहचान

कहने लगे वत्स तू कहाँ था, किस अतीत के गर्त में छुपा था

मैंने ढूंढा तुमको एक हजार वर्ष तक

और मिलने पर कहते हो, शेष कर लूं साधना रुको तब तक

मैंने किया है प्रतीक्षा इतने जन्मों तक, थोडी और कर लेंगे तब तक

कहकर वो मुस्काए, और दिया वो दान

जो है अति दुर्लभ इस जन्म में पाना,सदगुरु कृपा वरदान

सुमन सरन सिन्हा

मार्च २३, २००९
मनुष्यों  के  प्रकार 



मनुष्य है एक ऐसा विलक्षण प्राणी, जिसके हैं सम आकार
बाहर से सब हैं एक मगर, अंदर से हैं इनके अनेक प्रकार
जो इस मर्म को, जाने अनजाने करता है अनदेखा
वो करता है अपने को प्रताडित, और खाता है धोखा
अगर हृदय है अति भावुक, तो सम्हालो अपने को कर ठीक
कवि सुमन करता है विश्लेषण, ले लो हमसे अनमोल सीख
                                                                         
१. अति मृदुभाषी

जो मनुष्य है अति मृदुभाषी, और करता है सदा बड़ाई
तो समझ लो अपने निज-हित हेतु, उसने तुम्हे चढाई
ऐसा मनुष्य करता है प्रदर्शन मृदु वचनों का, वाह्यरूप से
और करता है मृदुभाषा का इस्तेमाल, जैसे लोग करें तुरूप से
उनकी हरेक भाषा होती है, कर्णप्रिय  व निराली
जैसे हो सुराही सुरा का अति सुंदर, मगर खाली

२. मृदुभाषी

मनुष्यों मे है वो श्रेष्ठ, जो कहता है सदा मृदुवचन 
जिसकी बातें होती नहीं यथार्थ से परे, वे हैं जन सज्जन
जो कहे सच को सच व झूठ को झूठ, पर सच्चेमन
और नहीं खेलता भावनाओं से कह, कठोर व अति मृदु वचन

३. कटुभाषी

जो मनुष्य करता है वार्तालाप कटु, वो होता नहीं है वाकपटु
इनके होते हैं दो प्रकार - या तो सत्यवक्ता या गंवार
यदा कदा पहुंचाते हैं मन को चोट, और याद आता है साईं
इसलिए मन ना हो घायल ऐसे नरों से, दूर रहो दस हाथ भाई

सुमन सरन सिन्हा 
अप्रैल ८,२००९


सुखों का रस


दृढ  संकल्प और, आत्मिक विश्वास 
देता है मनोकामना पूर्ति, व सकल आस

क्या सही और क्या गलत का, अगर है कसमकस
तो रखो आस्था, विश्वास  व हरि भक्ति को वस

हरि चरण में करो न्योछावर
अगर पाना है सुख,शांति व वर

कहता है कवि सुमन ये रहस्य
यही है शांति व सुखों का परम रस


सुमन सरन सिन्हा
सितम्बर २४,२००९ 


संगीत

जब रोम रोम करे भागवद गीत

तब वो है प्रभु सेवा और अविरल संगीत

संगीत मे है नीरसता का शोषण

जो करता है अध्यात्मिक मन का पोषण

संगीत करती है शांत, अतृप्त आत्मा

और करती है जागृत, सुप्त परमात्मा

संपूर्ण ब्रह्माण्ड है  ध्वनित संगीत से

नटवर का नृत्य हो या नारद के गीत से

संगीत बिन, मनुष्य जड़ सामान

जैसे जल बिन मछली और तीर बिन कमान

करें श्रवण संगीत का लेकर प्रभु का नाम

मिलेगा परमशान्ति, सुख और होगा कल्याण

सुमन सरन सिन्हा 
मार्च २२,२००९ 

एक कविता


एक कविता

अवयक्त विचारों की सरिता

मानसिक मनोविज्ञान की संहिता

करती है भावों को व्यक्त

जैसे उन्मक्त धरोहर करे अभिव्यक्त

वक्तिगत विचारों का संकलन

नई पुरानी घटनाओं का प्रकरण

सांसारिक समस्याओं का जिक्र

अपनी विवस्ताओं का फिक्र

सफलताओं और असफलताओं पर विचार

सामाजिक नेतिकता का ह्राष व बढ़ता व्यभिचार

आर्थिक समस्याओं का आकलन

या अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का विवरण

प्रेम और मुहब्बत का प्रसंग

या मन प्राकृतिक सुन्दरता के संग

करती है प्रकाशित जग को जैसे सविता

एक कविता

सुमन सरन सिन्हा 
मार्च १५,२००९