संवेदना
दिल की धड़कन और संवेदना
करती है व्यक्त, व्यथित मन की वेदना
और करती है संवेदनशीलता की झंकार
जैसे करती हों प्रर्दशित, हजारों सपनों को साकार
देती है हमारे मूर्त भावनाओं को आकर
और कभी करती है हमारी उन्मक्त इक्षाओं का तार तार
क्या ये है हमारी संचित संस्कारों की धरोहर
जो करती है प्रदर्शन बार बार
या ये है हमारी कल्पनाओं की काल्पनिक संसार
सुमन सरन सिन्हा
मार्च २४,२००९
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