Monday, September 17, 2012

मेरे मन के आँगन में 
इक्षाओं के इस गगन में 
होती है पुष्पित व प्रस्फुटित 
ये सांसारिक जगत की मोह व माया

कभी अपनों से तो कभी सपनों से
कभी मित्रों से तो कभी बंधुओं से 
होती है आसक्ति तो कभी विरक्ति 
ये सांसारिक जगत की मोह व माया 

कभी मन से तो कभी तन से 
कभी भोग विलास व धन से 
होती है ग्रसित 
ये सांसारिक जगत की मोह व माया 

कभी मान-सम्मान की अभिलाषा से 
तो कभी कुछ करने की लालसा से 
होती है आच्छादित 
ये सांसारिक जगत की मोह व माया 

अविरल बहती इन कामनाओं से 
पोषित मन की भावनाओं से 
होती है विषाक्त मन व काया 
ये सांसारिक जगत की मोह व माया 

कहता है कवि सुमन 
अगर पाना है वास्तविक मानशिक धन 
तो छोड़ना होगा अतिसय आशक्ति
और करना होगा प्रभु कामना व भक्ति 
तभी मिलेगा इस भवसागर से मुक्ति 

सुमन सरन सिन्हा 
कनाडा 
जुलाई ४, २०११ 

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